आधुनिक युग की यशोधरा : जसोदाबेन

जशोदाबेन जी

कल ट्रिपल तलाक पर मुस्लिम महिलाओं के हक में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया, ट्रिपल तलाक को समर्थन करने वाले कई तथाकथित सेकुलर ने बुझे मन से इसे स्वीकार तो किया पर वो इस फैसले के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को जिम्मेदार समझ उनके वैवाहिक जीवन पर निंदनीय और घटिया टिप्पणी कर अपनी भड़ास मीडिया के माध्यम से निकाल रहे हैं। आज हम आपको बतायेंगे नरेंद्र मोदी जी और जसोदाबेन जी के पवित्र रिश्ते का सच, उनकी कुर्बानियो के बारे में।

1968 में गुजरात के छोटे से गाँव वडनगर में एक 15 वर्षीय कन्या जसोदाबेन का विवाह एक चाय वाले के 17 वर्षीय पुत्र नरेन्द्र मोदी से हुआ। बचपन से ही नरेंद्र मोदी जी का आरएसएस से लगाव हो जाने की वजह से उन्होंने यह विवाह कभी स्वीकार नही किया। इस उम्र में विवाह का मतलब ही क्या था दोनो के लिए गुड्डो गुड़ियों के खेल जैसा। इस विवाह के बारे में उनके बड़े भाई सोमा भाई कहते हैं ‘मोदी ने सांसारिक भोग विलास को छोड़कर गृह त्याग कर रखा हैं, 40-50 साल परिवार बहुत ही गरीब था और हम लोग रुढ़िवादी बंधनों में चलने वाले परिवार की संतान हैं।’

सोमा भाई दामोदार दास मोदी आगे कहते हैं, ‘परिवार में शिक्षा नाम मात्र की थी। हमारे माता-पिता ने छोटी उम्र में हमारे भाई का विवाह करवाया। उनके लिए देश सेवा एकमात्र धर्म था। सांसारिक भोगविलास को छोड़कर गृह त्याग कर दिया। आज 45-50 साल बाद भी नरेंद्र भाई परिवार से अलिप्त हैं।’

कम उम्र में शादी होने पर दुल्हन की विदाई कुछ वर्षों के बाद करते हैं जिसे गौना बोला जाता हैं, जब जसोदाबेन गौना के बाद ससुराल गयी तो उनकी शिक्षा के बारे में मोदी जी ने उनसे बात की और उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया ताकि वो आत्मनिर्भर हो सके, और इसी के बाद देशहित के कार्यो के लिए मोदी जी ने अपना घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। यह त्याग वैसा ही हैं जैसे गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी और बच्चे को संसार के लिए त्याग दिया, महापुरुष ऐसे ही होते हैं उन्हें सांसारिक बन्धनों में नही बांधा जा सकता। इस बात के लिए ना तो जसोदाबेन और ना ही उनके परिवार के लोग उन्हें दोषी मानते हैं वो कहते हैं  कि ‘जसोदाबेन के मन में मोदी के लिए कभी कोई दुर्भावना नहीं आई क्योंकि घर के बुजुर्ग कहते थे कि नरेंद्र मोदी को कभी शादी नहीं करनी थी पर उनके पिताजी ने उनकी शादी जबरदस्ती करवा दी।’

जसोदाबेन के परिवार वाले आगे कहते हैं कि जब भी कोई मोदी के बारे में कुछ आपत्तिजनक बोलता था तो वह उसे चुप करा देती थीं। यहाँ तक की जसोदाबेन ने कभी मोदी या अपनी शादी को लेकर कोई मलाल व्यक्त नहीं किया। मोदी से अलगाव पर जशोदाबेन ने बस इतना कहा ”दर्द निजी है किसी और से कहने से क्या फायदा? ये भाग्य की बात है।”- शादी न चलने पर “इसमें उनकी क्या गलती? ”वो (मोदी) आगे बढ़े हैं अपनी बुद्धिमानी के बल पर। उनके पीएम बनने पर यही उनकी क्षमता है।” 

जशोदाबेन ने अपने एक इंटरव्‍यू में भी बताया कि मोदी ने उनसे साफ कह दिया था कि वह पूरे देश में यात्रा करेंगे और ऐसे में जशोदाबेन जहां जाना चाहें जा सकती हैं। जब जशोदाबेन वडानगर उनके परिवार के साथ रहने के लिए पहुंची तो मोदी ने उनसे सवाल किया कि वह अपने ससुराल क्‍यों आईं।

मोदी ने उनसे कहा कि वह अभी बहुत छोटी हैं और ऐसे में उन्‍हें अपनी पढ़ाई पर ही ध्‍यान देना चाहिए। जशोदाबेन ने इंटरव्‍यू में साफ कर दिया कि मोदी और उनके घर को छोड़ने का निर्णय सिर्फ उनका ही था। इस निर्णय को लेकर उनके और मोदी के बीच कभी कोई तनाव नहीं हुआ और न ही मोदी ने उनसे इस बारे में कोई सवाल किया।

जशोदाबेन के मुताबिक उन्‍हें आज भी याद है कि जब वह मोदी के घर गई थीं तो मोदी ने उनसे कहा था कि वह चाहते हैं कि जशोदाबेन अपनी पढ़ाई पूरी करें। जशोदाबेन और मोदी का ज्‍यादातर समय बस इसी चर्चा में गुजर जाता था। शायद ही लोगों को मालूम हो कि मोदी रसोई के कामकाज में भी रुचि दिखाते थे।

लगभग 40 साल तक स्कूल में अध्यापिका रही जशोदाबेन अब ठीक से सुन नहीं पाती हैं। वे बनांसकांठा जिले के राजोशाना गांव में एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती ‌थीं। जशोदाबेन यह भी बताती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए वे सप्ताह में चार दिन व्रत करती हैं और चावल नहीं खातीं।

जब जसोदाबेन को मोदी जी से कोई दिक्कत नही हैं तो फिर पता नही क्यो मोदी जी के विरोधियो को जसोदाबेन की इतनी चिंता हैं जिसे वो कुत्सित तरीके से व्यक्त करने से बाज नही आते और आज इसकी तुलना ट्रिपल तलाक की पीड़ित मुस्लिम महिलाओं से कर रहे हैं। भाई, जसोदाबेन ने कभी मोदी जी को दोषी नही माना अगर मानती तो वो भी मुस्लिम महिलाओं की तरह कोर्ट की शरण लेती।

यह तो रही मोदी जी की पत्नी की बात अब आगे आपको बताती हूँ उनके परिवार के बारे में तभी आप मोदी जी की देश के प्रति समर्पण समझ पायेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी के पिता दामोदरदास मूलचंद मोदी और उनकी पत्नी हीराबेन के छह बच्चों में से तीसरे नंबर पर हैं। जिन्होंने अपने परिवार को गुजरात का सीएम और फिर देश का पीएम बनने के बाद भी दुनिया की चका-चौध से दूर रखा जो लोगों को उनके निःस्वार्थ जीवन के बारे में बताने के लिए काफी है। पीएम नरेंद्र मोदी परिवार का हर सदस्य लाइमलाइट से दूर किसी आम आदमी की तरह ही जिंदगी बिता रहा है। आइए जानते हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाइयों के बारे में…

2003 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद परिजनों के साथ मोदी जी

सोमभाई मोदी: पीएम नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोमनाथ मोदी गुजरात में बुजुर्गों की देखभाल के लिए संस्था चलाते हैं। सोमभाई कहते हैं, मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं, प्रधानमंत्री का नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मैं देश के 125 करोड़ नागरिकों में से एक हूं। आपको बता दें कि सोमभाई मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे आज तक नहीं मिले हैं।

अमृतभाई मोदी: पीएम नरेंद्र मोदी के दूसरे बड़े भाई अमृतभाई मोदी साल 2005 में एक प्राइवेट कंपनी से बतौर फिटर रिटायर हुए थे और उनकी तनख्वाह सिर्फ 10 हजार रुपए थी। अमृतभाई मोदी फिलहाल अहमदाबाद के गढ़लोढ़िया इलाके में अपने बेटे संजय (47), उसकी पत्नी और दो बच्चों के साथ चार कमरे के घर में दुनिया की चका-चौध से दूर जिंदगी बिता रहे हैं। पीएम मोदी से अमृतभाई मोदी कि अब तक सिर्फ दो बार ही मुलाकात हो पाई है। पहली साल 2003 में जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे और दूसरी बार 16 मई 2014 को जब भाजपा ने लोकसभा चुनाव जीता था तब वे पीएम मोदी से मिले थे।

प्रह्लाद मोदी – प्रह्लाद मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई हैं और गुजरात के फेयर प्राइस शॉप ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए पीडीएस सिस्टम में पारदर्शिता को लेकर एक मुहिम शुरू की थी, जिसका उनके छोटे भाई प्रह्लाद मोदी ने विरोध किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाईयों के अलावा पीएम के अन्य भाई, भतीजों, भतीजियों और उनके चचेरे भाइयों की कहानी भी संघर्षो भरी है।

7RCR में मोदी जी अपनी माँ हीराबेन के साथ

पीएम मोदी के चाचा नरसिंहदास के बेटे अशोकभाई वाडनगर में एक छोटी दुकान में पतंग, पटाखे और स्नैक्स बेचते हैं। अशोकभाई से बड़े भरतभाई वडनगर से दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव के एक पेट्रोल पंप पर काम कर अपना गुजर बसर करते हैं।    

यहाँ यह उल्लेख करना बेहद जरूरी होगा की नोटबंदी के बाद 14 नवंबर को जब पीएम मोदी गोवा में एक सभा को संबोधित कर रहे थें, तब उन्होंने भावुक होकर कहा था, ”मैं इतनी ऊंची कुर्सी पर बैठने के लिए पैदा नहीं हुआ, मेरा जो कुछ था, मेरा परिवार, मेरा घर…मैं सब कुछ देशसेवा के लिए छोड़ आया।” इतना कहते समय उनका गला भर्रा गया था।

ऐसे हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, पत्नी परिवार घर सब देश की सेवा के लिए छोड़ दिया उन्होंने, और लोग उन पर अनर्गल आरोप लगाते हैं, देश के बाकी राजनैतिक परिवार वो दिल्ली में गांधी परिवार, यूपी का मुलायम जी का परिवार, लालू जी का परिवार या किसी भी नेता का परिवार उठाकर देख लीजिए की वो आज किस स्तर पर हैं ।

राजनीति ऐसी सुचिता और नैतिकता की होती हैं यह नही की राजनीति में आने के बाद लाभ के पदों पर अपने परिवार को तो छोड़िए रिश्तेदारों और गांववालों तक को अनुचित लाभ दे उन्हें सत्ता का सुख प्रदान किया जाए।

सोशल मीडिया पर चल रही बहस की झलकियां

‘तीन तलाक’ और ‘हलाला’ के बाद टूट गईं थीं ‘ट्रेजडी क्‍वीन’ मीना कुमारी

‘ट्रेजडी क्‍वीन’ के नाम से फिल्‍मी दुनिया का जाना माना नाम मीना कुमारी पर्दे पर अपने हर अंदाज के लिए तारीफें बटोरती रहीं, लेकिन अपने जीवन में उनके साथ हुई एक घटना ने इस ‘सुपरस्‍टार’ को मानसिक रूप से पूरी तरह तोड़कर रख दिया था. इन दिनों देश में ‘तीन तलाक’ की वैधता पर कानूनी जंग चल रही है. तीन तलाक वैध है या नहीं, इस पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संसद के नए कानून बनाने तक तीन तलाक पर रोक लगा दी है. बता दें कि सालों पहले मीना कुमारी उर्फ महजबीं बानो भी ‘तीन तलाक’ और ‘हलाला’ की प्रथा से गुजर चुकी हैं.

मीना कुमारी की शादी फिल्‍म ‘पाकीजा’ के निर्देशक कमाल अमरोही से हुई थी. एक बार मीना कुमारी को उनके शौहर कमाल अमरोही ने गुस्से में आकर तीन बार तलाक बोल दिया और उनका तलाक हो गया. फिर बाद में पछतावा होने पर उन्होंने मीना कुमारी से निकाह करना चाहा. लेकिन तब इस्लामी धर्म गुरुओं द्वारा बताया गया कि इसके लिए पहले मीना कुमारी का ‘हलाला’ करना पड़ेगा. तब कमाल अमरोही ने मीना कुमारी का निकाह अपने दोस्त अमान उल्ला खान (जीनत अमान के पिता) से करवाया. मीना कुमारी को अपने नए शौहर के साथ हम बिस्तर होना पड़ा था और फिर इद्दत यानी मासिक आने के बाद उन्होंने अपने नए शौहर से तीन तलाक लेकर अपने पुराने शौहर कमाल अमरोही से दुबारा निकाह किया.
मीना कुमारी ने लिखा था, ‘ जब मुझे धर्म के नाम पर, अपने जिस्म को, किसी दूसरे मर्द को भी सौंपना पड़ा, तो फिर मुझमें और वेश्या में क्या फर्क रहा ? इस दुर्घटना ने मीना कुमारी को मानसिक रूप से तोड़कर रख दिया था और फिर मानसिक शांति के लिए वह शराब पीने लगीं थी. मानसिक तनाव और शराब ही उनकी अकाल मौत की वजह बनी थी और सिर्फ 39 साल की उम्र में 1972 में मीना कुमारी दुनिया छोड़ कर चली गईं.
क्‍या है हलाला  वर्तमान मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों के अनुसार अगर किसी मुस्लिम महिला का तलाक हो चुका है और वह अपने उसी शौहर से दोबारा निकाह करना चाहती है, तो उसे पहले किसी और शख्स से शादी कर हम बिस्‍तर होना पड़ता है. इसके बाद वह इस पति से तलाक लेकर फिर से अपने पुराने पति से विवाह कर सकती है. इसे निकाह हलाला कहते हैं
साभार: दीपिका शर्मा, NDTV India

कर्नल पुरोहित क्यो फँसाये गए

आखिरकार मालेगांव बम धमाके को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नल पुरोहित को जमानत दे दी है। वे आठ साल से जेल में बंद थे। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि हम बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को ध्यान में न रखते हुए पुरोहित को जमानत दे रहे हैं। कर्नल पुरोहित भारतीय सेना के इंटलीजेंस डिपार्टमेंट के लिए काम करते थे।

 

तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिन्दू आतंकवाद नाम के शब्द को जस्टिफाई करने के लिए कर्नल पुरोहित को इस केस में सिर्फ अपने वोटबैंक (आप समझ सकते हैं) को खुश करने के लिए फँसाया था, आप समझ सकते हैं अगर साजिशकर्ता सरकार में हो तो कितने गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। कर्नल पुरोहित को आतंकवाद के दो झूठे मामले में फंसाया गया पहला मालेगांव दूसरा समझौता एक्सप्रेस था, मालेगांव मामले में उन्हें आज जमानत मिल गयी और समझौता एक्सप्रेस वाले मामले में एनआईए के महानिदेशक शरद कुमार ने कहते हैं।

“समझौता विस्फोट मामले में उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। वह कभी भी आरोपी नहीं था। मुझे हैरानी है कि समझौता विस्फोट मामले में उसका नाम क्यों जोड़ा जा रहा है।”

 

यहाँ तक की एनआईए 8 साल के लंबे वक्त के बावजूद उनके खिलाफ चार्जशीट तक दायर नही कर पाई, यह क्या कम चौंकाने वाली बात है। खासतौर पर इसलिए भी कि उन्हें सेना वेतन भी दे रही है। साफ है कि सेना भी उन्हें निर्दोष मानती है। अब सवाल उठता हैं कि आखिर कर्नल पुरोहित को क्यो फँसाया गया? हिन्दू आतंकवाद को जस्टिफाई करने के अलावा वरिष्ठ पत्रकार मधु किश्वर एक और एंगल इस केस पर देती हैं कि  ‘ले.कर्नल पुरोहित के सीने में कई राज हैं। उनमें कुछ ऐसे हैं जो देश के कई कद्दावर नेताओं को बेनकाब कर सकते हैं और उन नेताओं की घटिया राजनीति की पोल खोल सकते हैं। ये सारी जानकारी ले.कर्नल पुरोहित ने अपने कामकाज के दौरान हासिल की है’।

 

दूसरी तरफ  ‘रॉ’ के पूर्व अधिकारी आरएसएन सिंह  लिखते हैं, ‘देश में मौजूद सांप्रदायिक ताने-बाने को कमजोर करने और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए एक व्यूह रचना की गई। ऐसा करने के पीछे एक ही वजह थी- ‘वोट बैंक की राजनीति।’ उसी के तहत ‘जेहादी आतंक’ की तर्ज पर ‘हिन्दू आतंक’ का तानाबाना बुना गया’

 

खैर 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद तेजी से कानूनी कार्रवाई शुरू हुई 15 अप्रैल 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि कर्नल पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं, इसलिए उनकी जमानत पर विचार होना चाहिए। उन पर मकोका भी हटा दिया गया। लेकिन कांग्रेस सरकार ने उनके इर्दगिर्द साजिशों का ऐसा ताना-बाना बुना था कि जमानत में लगातार देरी होती गई।

 

कर्नल पुरोहित के केस पर अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक, भाजपा नेता डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी और उनके वकील हरीश साल्वे ने अथक प्रयास कर साजिश के तमाम ताने-बाने को तोड़ दिए जिसके फलस्वरूप आज कर्नल पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी हैं उम्मीद हैं कि आने वाले दिनों में सच्चाई पर लगा हर दाग धूल जाएगा और कर्नल पुरोहित बाइज्जत बरी होंगे।

 

इस बड़ी जीत में कर्नल पुरोहित की धर्म संगिनी उनकी पत्नी अपर्णा पुरोहित के लड़ने के जज्बे को भी सलाम, जब कर्नल पुरोहित का कोई नाम नही लेना चाहता था तब भी उन्होंने अपने पति पर विश्वास किया और अभूतपूर्व कानूनी लड़ाई लड़ी पर सवाल यहाँ यह भी उठता हैं कि कौन लौटाएगा उनके वो 8 साल जो उन्होंने बगैर पति के दुनिया के अपमान सहते हुए काटे।

 

कर्नल पुरोहित पेशी पर जाते, दूसरी फ़ोटो में पत्नी के साथ

हमारी सरकारी से माँग हैं इस मामले की निष्पक्ष जाँच हो और कर्नल पुरोहित को फँसाने वाले साजिशकर्ताओं को बेनकाब कर कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, क्योकि उन्होंने देश की सेना और हिन्दू धर्म पर कालिख पोतने की कोशिश की हैं। यह ना भुला जाए कि जिन कंधो पर देश की सुरक्षा का भार हैं वही देश के बहादुर सैन्य और पुलिस अधिकारी इस तरह के मामलों में फँसाये जायेंगे तो कौन देश की सुरक्षा करेगा। कौन लेगा आतंकवादियों से लोहा जब जान पर खेलकर उनका इनकाउंटर करने वाले अफसरों को मेडल की जगह जेल मिलेगी? प्रश्न विचारणीय हैं सोचिए समझिए और अपने विचार कमेंट बॉक्स में देना ना भूलिये।

देश के खिलाफ साजिश : रोहिंग्या शरणार्थी

आखिर कौन हैं रोहिंग्या शरणार्थी? कहाँ से आये हैं, किधर बसाए गए हैं, हमें उनसे क्या समस्या है, क्या हमें उनकी मदद करनी चाहिए या फिर ये किसी साजिश के तहत भारत में बसाए जा रहे हैं? सम्भवतः ऐसे तमाम सवाल रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम सुनते ही हमारे जेहन में आ जाते हैं। आइये आपको विस्तार से बताते हैं रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के बारे में –

जैसा कि मानचित्र में आप देख सकते हैं, म्यांमार का अरकान(रखाइन) प्रान्त बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है, इसी प्रान्त में रोहिंग्या मुस्लिम सबसे ज्यादा हैं। वैसे तो म्यांमार का कोई कानूनी धर्म नहीं है लेकिन फिर भी ये देश बौध्द धर्म को तबज्जो देता है और यहां की सरकार में चीन का हस्तक्षेप भी काफी ज्यादा रहता है। म्यांमार के नागरिकता कानून (1982) के हिसाब से रोहिंग्या मुस्लिम वहां के नागरिक नहीं माने जाते हैं क्योंकि ये वो मुसलमान थे जो बांग्लादेश से वहां पर घुसपैठ करके पहुंचे थे। बौध्द धर्म अपनी अहिंसा के लिए दुनियाँ में जाना जाता है फिर भी रोहिंग्या मुस्लिम और म्यांमार के बौद्ध लोगों के बीच बहुत झगड़े फसाद होते हैं। संभवतः इसके दो कारण हो सकते हैं, पहला ये कि किसी भी देश के नागरिक नहीं चाहेंगे कि उनके देश के संसधानों पर किसी और देश के शरणार्थी आकर राज करें और मूल निवासी ही उनसे वंचित रह जाएं। दूसरा कारण ये है कि शरणार्थी भी अहिंसक हों, नियम मानने वाले हों, जिस देश का नमक खाएं उसकी देशभक्ति करने वाले हों तो फिर भी ठीक है वरना कोई भी देश अपने देश में देशद्रोहियों का जमावड़ा नहीं लगाना चाहेगा। यही कारण है, तभी शान्तिप्रिय बौद्ध अनुयायी भी ऐसे लोगों को अपने देश में नहीं देखना चाहते। प्रवास भी क्षणिक होता है, जीवन पर्यंत जो रहना चाहता है उसको उसके मूल निवासियों की सभ्यता और संस्कृति से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे कायदे से देखा जाए तो मुस्लिम एकलौता ऐसा धर्म है जो किसी दूसरे धर्म को सम्मान नहीं देता, अपेक्षाकृत कट्टर भी होता है, इसके अनुयायी देश से बढ़कर मजहब को मानते हैं, शायद सबसे बड़ा कारण यही हो सकता है जिससे इतने साल म्यांमार में रहने के वावजूद रोहिंग्या मुस्लिम कभी वहां के मूल निवासियों के साथ समांजस्य नहीं बिठा पाए।

शायद आपको याद होगा, भारत में बोध-गया मन्दिर में एक बम विस्फोट हुआ था और तब हमलावर ने हमला करने का कारण बताया था कि बौद्ध धर्म को मानने वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की खातिर उसने बौद्ध मंदिर पर हमला किया है। बस यहां से शुरुआत होती है मजहबी पाखंड की, म्यांमार में कुछ हो रहा होगा तो आतंक भारत में फैलाया गया और भारत के मतान्ध राजनेता इसे “आतंक का कोई मजहब नहीं होता” उच्चारित करके निंद्रामग्न हो गए।

भारत और म्यांमार की सीमा के बीच पहाड़ और जंगलों की काफी अधिकता है, दौनों देशों में कुछ जन जातियां बंटी हुई हैं सीमापर जिसके लिए दौनों देशों के बीच ऐसा समझौता हो चुका है जिससे कि उन जनजातियों के लोग बिना पासपोर्ट के बॉर्डर पार कर सकते हैं। भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी भूल यहीं से शुरू होती है, क्रिमिनल्स, आतंकी और शरणार्थी घुसपैठिये अधिकतर छोटी मोटी वारदातें करके बॉर्डर के पार आ जा सकते हैं। जंगलों की वजह से उसको पकड़ने में और बड़ी समस्या पैदा हो जाती है।

अब सबाल ये उठता है कि म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिम भगाये क्यों गए? सम्भवतः इसके प्रमुख कारण ये हो सकते हैं –

1. एक बार म्यांमार के मुस्लिम जेहादियों ने म्यांमार सुरक्षाबलों की चौकियों पर आतंकी हमला कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप म्यांमार सुरक्षाबलों ने रोहिंग्या मुस्लिमों को निशाने पर लिया।

NBT: म्यांमार: रोहिंग्या उग्रवादियों ने 24 पुलिस पोस्ट्स पर किया हमला, 89 की मौत

http://nbt.in/SZ9IVb/bga via @NavbharatTimes: http://app.nbt.in

2. मजहबी पाखंड में अंधे होकर रोहिंग्या मुस्लिमों ने आतंक का रास्ता अपनाया जिसकी वजह से शांतिपूर्ण अहिंसक बौद्ध अनुयायियों वाले देश में भी विरोध उत्पन्न हुआ।

3. अपने विरोध का जताने के लिए मुस्लिमों ने अलग अलग देशों में भी कई हिंसक प्रदर्शन किए, भारत में बोध-गया में बम विस्फोट किया गया। अमर जवान ज्योति क्षतिग्रस्त की गई, कई हिंसक झड़पें हुई स्थानीय पुलिस के साथ। जिसके फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय दबाब म्यांमार पर आ गया और उसने और अधिक सख्ती से रोहिंग्या मुस्लिमों के विरोध को दबाना शुरू कर दिया और ज्यादा से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों ने बॉर्डर पार करके बांग्लादेश और भारत में अवैध रूप से घुसना शुरू कर दिया।

अब बांग्लादेश में जनसंख्या घनत्व पहले से काफी ज्यादा है, गरीबी अशिक्षा के दलदल में फंसा हुआ मुस्लिम बहुल बांग्लादेश भी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए कोई खास मददगार न हो सका, लेकिन बांग्लादेश ने उन्हें एक जरिया जरूर दे दिया क्योंकि बहुत सारे बांग्लादेशी तत्कालीन अदूरदर्शी भारत सरकार के सामने भारत में अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर रहे थे और ऐसे राज्यों में जा रहे थे जहां की सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण को तवज्जो दे रही थीं। ऐसे में इन लोगों को अनुकूल माहौल मिलता गया। रोहिंग्या मुस्लिमों ने थाईलैंड, लाओस, फिलीपींस, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत और इंडोनेशिया के रास्ते ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचने की कोशिश भी की और तत्कालील उदार सरकारों ने अपने यहां शरण भी दी। ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने यहां इंडोनेशिया से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों के आने पे रोक लगा दी, लेकिन इन सबके बीच भारत का रुख सबके निराशाजनक रहा। तत्कालीन भारत सरकार ने तो कभी खुलकर रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की बात स्वीकारी और इसके विपरीत भारत में चुपके से उनको बसाने का अथक प्रयास भी किया।

अब सबाल ये आता है कि वो कौन से राज्य थे, वो कौन सी राजनैतिक पार्टियां थी जो इतने बड़े पैमाने पर हो रही घुसपैठ पर अपनी सहमति दे रही थीं? शुरुआत करते हैं उन राज्यों से जहां या तो कम्युनिस्ट सरकारें थी या फिर वो जो मुस्लिम तुष्टिकरण में पूर्णतः यकीन रखती थी। रोहिंग्या मुसलमान भारत सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में झुग्गी झपड़ियों में बसे रहे, तत्कालीन सरकार ने उनके राशनकार्ड, आधारकार्ड तक बनवा दिए। हैदराबाद में रोहिंग्या मुस्लिमों को सबसे अनुकूल माहौल मिला, ओवैसी जैसे नेताओं ने भरसक प्रयास किया उनको भारतीय नागरिकों की भांति सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं। मुम्बई रोहिंग्या मुसलमानों का अगला सुरक्षित ठिकाना बना क्योंकि यहां पे काफी संख्या में बांग्लादेशी भारत के नागरिक बन कर रह रहे थे, भारतीय नागरिकों की तरह ही सारी सुविधाएं इस्तेमाल कर रहे थे। हमारे घृतराष्ट्र नेताओं ने मुस्लिम तुष्टिकरण वोट बैंक के लिए उनको आधारकार्ड से लेकर भारत के पासपोर्ट तक की सुविधाएं दिलवाई।

1990 कश्मीर दंगें में एक ओर जहां कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं, मुस्लिम वोटबैंक के लिए नेताओं ने साजिश के तहत उनको कभी कश्मीर में वापस बसने नहीं दिया। कश्मीर में से लगभग सारे के सारे हिन्दू या तो मार दिए गए या फिर भगा दिए गए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कोई भी भारतीय जो कश्मीर का निवासी नहीं है, वहां जमीन नहीं ले सकता है लेकिन नेताओं ने रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर में बसने दिया। आपकी जानकारी के किये इधर बता दूं, कश्मीर से अधिकतर हिन्दू मारकर भगा देने के उपरांत, केवल जम्मू ही ऐसी जगह है जो राज्य की शासन व्यवस्था में बराबर की सहयोगी है और यहां पर हिंदुओं की जनसँख्या मुस्लिमों से अधिक है, इसी वजह से अब तक जम्मू से कोई हिन्दू ही राज्य विधानसभा या संसद पहुंचता था लेकिन ये सब जानते हुए ही पूरी प्लानिंग के साथ रोहिंग्या मुस्लिमों को कश्मीर में नहीं बल्कि जम्मू में बसाया गया, उनके वोटर कार्ड बनवाये गए जिससे इलाके में मुस्लिमों का प्रभुत्व बढ़ाया जा सके। अलग कश्मीर की वकालत करने वाले अलगाववादी नेता इस मुद्दे पर चुप रहे लेकिन अनुच्छेद 34 और 370 की सलामती के लिए मुखर रहे, अगर ये साजिश न होती तो रोहिंग्या मुसलमान भी जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं थे तो उनके बसने पर कथित अलगाववादी नेताओं ने विरोध क्यों नहीं किया? भारत की बड़ी बड़ी पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर चुप क्यों रहे? क्या उन्हें ये पता नहीं था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक उन सवा सौ करोड़ लोगों का है जो यहां की अभी तक हुई प्रगति में सहायक रहे हैं उनका नहीं जो दो दिन पहले आकर बस जाएं और बेरोजगारी-अशिक्षा-आतंक में चार चांद लगाएं।

आधुनिक भारत में उन रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को शरण देना जो अनधिकृत रूप से सीमापार करके आये हैं, सबसे बड़ी अदूरदर्शिता को सिद्ध करता है और ये भी सिद्ध करता है कि ये साजिश की जड़ें कहीं न कहीं कम्युनिस्ट विधाराधारा, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति और इस्लामिक आतंकवाद से जुड़ी रही हैं। क्या भारत के नागरिक होने पर किसी नेता का ये कर्त्तव्य नहीं होता कि वो अपने देश के हित के बारे में सोचे? निम्नाकित बिंदुओं पर विचार कीजिये –

1. भारत में कितने लोग गरीबी रेखा ने नीचे रह रहे हैं, कितने लोगों को एक समय का खाना भी नसीब नहीं हो रहा? अशिक्षा से हमारा मुल्क अभी भी लड़ रहा है। क्या ऐसे में ये गैर-जिम्मेदार पाखंडी घुसपैठिये हमारे देश की समस्याएं और नहीं बढ़ाएंगे?

2. किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि सरकार गरीबी रेखा ने नीचे रहने वाले लोगों के लिए अन्न का दाम जानबूझकर कम रखती है जिससे किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाते। कम्युनिस्ट और विपक्ष लगातार ये मुद्दा उठाता रहता है, मैं उनसे पूछना चाहूंगा ये बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी क्या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले नहीं होंगे? क्या ये देश के किसानों की मौतों का जिम्मेदार नहीं बनेंगे? और ये सब समस्या विपक्ष की दी हुई है क्योंकि तत्कालीन सरकार इनकी ही थी जिन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण दी।

3. दुनियाँ का सबसे युवा देश है भारत, अधिकतर युवा बेरोजगार हैं, ऐसे में क्या ये निकम्मे घुसपैठिये क्या हमारा रोजगार नहीं छीन लेंगे जिस पर सबसे ज्यादा हक हम लोगों का है क्योंकि हमारे पूर्वजों के खून पसीने की कमाई से ही आज हम यहां तक पहुंचे हैं।

4. तारीफ करनी होगी भारत दिलदार मुल्क है, हमने पारसियों को पनाह दी बदले में टाटा जैसे लोगों ने देश की तरक्की में भी बहुत योगदान दिया। जब दुनियाँ के कोने कोने में यहूदी मारे जा रहे थे तब हमने भारत में यहूदियों को खरोंच नहीं आने दी बदले में इजरायल आजतक इस बात का आभार मानता है और भारत को मातृभूमि कहता है, हरदम मदद करता है। लेकिन आप सोचिए क्या रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान शरण देने के लायक हैं? नहीं! क्योंकि इनसे हमें अशिक्षा, बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, अपराध और आतंक जैसी समस्याओं से ही दो चार होना पड़ेगा और दूसरा ये लोग कभी भारत के देशभक्त नहीं होंगे। सदैव ये खतरा रहेगा कि कहीं देश की गुप्त सूचनाएं बेचकर देश की सुरक्षा में सेंध न लगा दें।

5. सबसे बड़ी बात ये है, रोहिंग्या और बंगलादेशी मुसलमानों के सम्बंध कई आतंकवादी संगठनों से हैं, पश्चिमबंगाल का जो हाल कम्युनिस्ट और तृण मूल कांग्रेस के राज्य में हुआ है आतंक का उससे जीता जागता उदाहरण नहीं हो सकता। बम बनाने की फैक्ट्री, असलहे और दंगें की खबरें तो आम बात हैं, इस प्रदेश की सरकार का भी इन लोगों को पूरा समर्थन प्राप्त है। रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ में सम्भवतः पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्व के राज्यों की सरकारों की अदूरदर्शिता रही होगी जिसका खामियाजा हम लोग आज भुगत रहे हैं। बोध-गया में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बम विस्फोट किये गए, अमर जवान ज्योति को क्षति-ग्रस्त किया गया, बंगाल में लगभग हर एक दो महीने में पूर्वनियोजित दंगे करवाये गए, असम में स्थानीय लोगों की जमीनें हड़पी गई लेकिन तत्कालीन सरकारें ये सब जानते हुए भी चुप रहीं। वजह केवल और केवल मुस्लिम तुष्टिकरण और कुछ नहीं।

अब तो शायद आप समझ ही गए होंगे कि कैसे किसी पूर्वनियोजित साजिश के तहत भारत में रोहिंग्या और बांग्लादेश के मुसलमानों की शरण दी गई। एक सपना जो औरंगजेब ने देखा था भारत को “दारुन-ए-हर्ब” से “दारुन-ए-इस्लाम” में बदलने का और उसी को साकार की कोशिश में केवल इस्लामी लोगों को शरण दी गई, मुस्लिम तुष्टिकरण में तत्कालीन सरकार या यूं कहें आज के विपक्ष ने ये साजिश में अपना यथासंभव योगदान दिया। एक ऐसा देश जिसमें अपने ही एक राज्य के नागरिक दूसरे राज्यों में शरणार्थी बने हुए हैं, उन कश्मीरी पंडितों के लिए इन नेताओं का दिल नहीं पसीजता? अनुच्छेद 370 केवल हम भारतीयों को कश्मीर में बसने से रोकने के लिए है रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं? क्यों केवल हिन्दू अमरनाथ यात्रियों पर ही हमला होता है रोहिंग्या मुसलमानों पर नहीं? क्यों पाकिस्तान सीजफायर वोइलेशन जम्मू के हिन्दू बहुल इलाकों में ही करता है, कश्मीर के एक भी जिले में नहीं? क्यों पुलिस अफसर जिसके नाम मे पंडित है उसे भीड़ द्वारा मार दिया जाता है और इसमें तथाकथित इन्हीं ठेकेदारों को मोब-लिंचिंग नहीं दिखती? क्यों निर्भया केस का मुख्य आरोपी एक सिलाई मशीन देकर छोड़ दिया जाता है? क्यों आतंकवादी याकूब मेमन के लिए आधी रात में कोर्ट खुलवाया जाता है, वहीं क्यों कई लोग न्याय के लिए मर तक जाते हैं? क्यों आतंकवादी अफजल गुरु और कसाब को बचाने के लिए याचिकाएं दाखिल होती हैं? इन सबका एक ही जबाब है, देश एक बहुत बड़ी साजिश का शिकार है, जितने जल्दी समझ लेंगें हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए उतना बेहतर होगा।

अब जब भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का मन बना ही लिया है तो इसमे मानवाधिकार संगठनों को आपत्ति है, यही Amnesty International उस समय घास चरने चला जाता है जब कश्मीरी पंडितों को मारकर अपने ही घरों से बेदखल कर दिया जाता है, इराक मे येजेड़ी महिलाओं पे ISIS का अत्याचार होता है या फिर पाकिस्तानी सेना बलूचों पर जुल्म करती है… तब न तो ये मानवता के दलाल दिखाई देते हैं न ही विकसित देशों के राजनेता जिन्हें बस दूसरे देशों में ही शरणार्थी ठिकाने लगाने होते हैं अपने देश में नहीं। कुछ लोगों को इससे भी आपत्ति है कि भारत ने 1950 मे तिब्बती शरणार्थियों को अपनाया, 1971-72 में बंगलादेशी शरणार्थियों को अपनाया तो रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों वापस भेजा जा रहा है ? तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं, भूतकाल में जो निर्णय लिया गया ज़रूरी नहीं वो सही ही हो, तिब्बत शरणार्थियों के भारत में आना पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की अदूरदर्शिता का परिणाम था क्योंकि सरदार पटेल तो तिब्बत को भारत में पहले से ही मिलाना चाहते थे तब ऐसी किसी समस्या की सम्भावना ही न रहती। रही बात बांग्लादेशी शरणार्थियों की, तब बात दूसरी थी वही म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों से भारत का कोई नाता नहीं रहा कभी।

“Indian authorities are well aware of the human rights violations Rohingya Muslims have had to face in Myanmar and it would be outrageous to abandon them to their fates” — Spokesperson, Amnesty International

“The government should explain why it is walking away from Rohingyas, where India could play a leadership role in resolving the challenging human rights situation which has forced lakhs to leave over the years, especially given India’s track record with Tibetans in the 1950s, Bangladeshis in the 1970s and Sri Lankans in the 1980s, and Afghans in the 1990s”— South Asia Director of Human Rights Watch

हम सब लोगों को अनाधिकृत रूप से रहे उन सभी घुसपैठियों का विरोध करना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे संसाधनों का प्रयोग करके हम ही लोगों को अपने अधिकारों से वंचित कर रहे हैं और हमारे देश की तरक्की को बाधित कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर बड़ी बहस शुरू हो चुकी हैं, आप सभी से निवेदन हैं कि इस आसन्न खतरे को देखते हुए इस बहस में हिस्सा ले और इन रोहिंगा लोगो को निकाल बाहर करने के लिए इस बहस में हिस्सा ले और सरकार पर दबाव बनाए।

सोशल मीडिया में चल रही रोहिंग्या शरणार्थियो पर बहस की झलकियां।

रवीश! निष्पक्ष बहस करने की NDTV की हैसियत नहीं और बात करते हो आमने-सामने कैमरा लाइव की? बहस करोगे, है हिम्मत?

एनडीटीवी पर सीबीआई छापे के विरोध में उसके बकैत एंकर रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए फिर से लफ्फाजी कर शहीद बनने की कोशिश की है! वह NDTV पर सवाल उठाने वाले सोशल मीडिया के लोगों को चंपू कह रहा है! जो मीडिया एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय/ राधिका राय व चैनल के शेयर होल्डर्स पर छापे की खबर दिखा रही है, उसे ‘गोदी मीडिया’ कह रहा है! कार्रवाई करने वाली सरकार को आमने-सामने लाइव बहस की चुनौती दे रहा है! लाइव बहस कर तो रहे थे भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा, फिर इस बकैत के एनडीटीवी को बर्दाश्त क्यों नहीं हुआ? इसे सोशल मीडिया द्वारा सवाल पूछना मंजूर नहीं, क्योंकि 10 साल से NDTV के भ्रष्टाचार पर कोई सवाल नहीं पूछता था! इसे वो मीडिया हाउस पसंद नहीं जो इसके खिलाफ खबर दिखाते हैं, क्योंकि इससे पहले मीडिया के नाम पर पावर ब्रोकिंग का पूरा नेक्सस चल रहा था! इसके फेसबुक पोस्ट का Point-To-Point मैंने जवाब दिया है! यदि वास्तव में यह पत्रकार है तो लाइव कर ले और केवल लफ्फाज है तो ‘फ्री स्पीच’ के पेटिकोट घुस जाए! वामपंथी पत्रकारों और अवार्ड वापसी बुद्धिजीवी गिरोह का दोगलापन अब जनता बर्दाश्त नहीं करेगी!”

1) रब्बिश-तो आप डराइये, धमकाइये, आयकर विभाग से लेकर सबको लगा दीजिये। ये लीजिये हम डर से थर थर काँप रहे हैं!

जवाबः क्या तुम्हें देश की अदालत पर भरोसा नहीं है जो डरने का नाटक कर रहे हो? अभी तक कार्रवाई नहीं हो रही थी तो कहते थे सरकार तुम्हारी है कार्रवाई क्यों नहीं करते? आज सीबीआई ने छापा मारा है तो कह रहे हो कि एजेंसियों को पीछे लगाकर डरा रहे हैं! अरे जब इस देश की सरकार से तुम अफलज, याकूब, कन्हैया, उमर खालिद जैसे भारत के टुकड़े करने वालों के लिए लड़ लेते हो तो इतनी भी कूबत नहीं है कि अपने लिए अदालत में लड़ सको? इसलिए यह दोगलापंथी छोड़ो और कानून का सम्मान करो।

सरकार गलत है या तुम्हारा टीवी यह अदालत तय करेगी, तुम्हारी बकैती नहीं! शहीद बनने की कोशिश मत करो। हम बनने नहीं देंगे! याद रखना, एनडीटीवी का मतलब इंडिया नहीं होता, पत्रकारिता नहीं होता! पिछले एक दशक में एनडीटीवी का मतलब हो गया है- पावर ब्रोकिंग, हवाला करोबार और मनी लाउंड्रिंग! इन आरोपों को मिटाने के लिए अदालत पर भरोसा करो! रात के दो बजे अदालत खुलवाने वाले लोग जब बकैती करें तो समझ में आ जाता है कि उनके मन में चोर छिपा है।

2) रब्बिश- सोशल मीडिया और चंपुओं को लगाकर बदनामी चालू कर दीजिये लेकिन इसी वक्त में जब सब ‘गोदी मीडिया’ बने हुए हैं , एक ऐसा भी है जो गोद में नहीं खेल रहा है। आपकी यही कामयाबी होगी कि लोग गीत गाया करेंगे- गोदी में खेलती हैं इंडिया की हजारों मीडिया।

जवाब- सोनिया, राहुल और चिदंबरम की गोद में जब 10 साल खेलते रहे तो याद नहीं आ रहा था- ‘गोदी में खेलती है इंडिया की हजारों मीडिया!’ कितने बड़े दोगले और मक्कार हो तुम! एनडीटीवी पर केवल वामपंथियों को बोलने की आजादी थी, आज सोशल मीडिया ने जब हर किसी को बोलने की आजादी दी है तो तुम इन्हें चंपू कह रहे हो! क्या तुम्हें केवल अपने लिए अभिव्यक्ति की आजादी चाहिए थी? देश की बांकी जनता क्या गूंगी है?

यूपीए सरकार की ‘गोदी मीडिया’ तो तुम थे! 4 जून 2011 को रामलीला मैदान में एक शांतिपूर्ण ढंग से हो रहे बाबा रामदेव के आंदोलन को यूपीए सरकार ने कुचल दिया था और तुम या तुम्हारा चैनल 4 जून की रात और पूरे 5 जून को इस पर एक खबर तक नहीं दिखाया। एक बाप की औलाद हो तो 4-5 जून 2011 का एक भी फुटेज दिखा दो जिसमें तुमने रामदेव के आंदोलन को कुचलने वाली यूपीए सरकार के खिलाफ एक भी खबर का प्रसारण किया हो। सोनिया गांधी और अहमद पटेल की गोदी तब तुम्हें कितनी प्यारी थी, इससे बड़ा दूसरा उदाहरण और क्या होगा?

यूपीए सरकार की ‘गोदी मीडिया’ तो तुम हो रब्बिश, जिसने 2जी में यूपीए सरकार के साथ मिलकर देश लूटा। पहले सीएजी और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक ने 2जी में लूट को स्वीकार किया है। अरे तुम तो संवैधनिक संस्थाओं द्वारा सर्टिफाई कांग्रेस की ‘गोदी मीडिया’ हो! 2जी ही क्यों, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में तो सीएजी ने एक तरह से लिखित रूप से एनडीटीवी को कांग्रेस की यूपीए सरकार का चंपू व ‘गोदी मीडिया’ करार दिया था। 2011 में संवैधनिक संस्था सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि करीब 37 करोड़ की खैरात तुम्हारे चैनल ने कांग्रेस की यूपीए सरकार से कॉमनवेल्थ की लूट में हासिल किया था। अपने दोगलेपन को कहां-कहां छुपाओगे? तुम्हारा और तुम्हारे चैनल का चरित्र ही कांग्रेस की गोदी में बैठना रहा है!

यूपीए सरकार के दौरान पी.चिदंबरम के 5000 करोड़ के हवाला मनी की ‘गोदी’ का आनंद तुम्हारे चैनल ने उठाया! विदेश में फर्जी कंपनियां बनाकर करोड़ों-अरबों के काले धन को सफेद करने का ‘गोदी आनंद’ तुम्हारे मालिक ने लिया! और आज दूसरों को ‘गोदी मीडिया’ कह रहे हो? अरे पहले गिरेबान में झांकना सीखो! शर्म आती है या नहीं? और हां, यह मत कहना कि यह सब आरोप हैं, अभी तक साबित कुछ नहीं हुआ! आरोपमुक्त तो कन्हैया, उमर भी नहीं हुआ था, अफजल को तो अदालत ने फांसी की सजा दे दी थी, लेकिन इनके लिए तो तुमने पूरे चैनल को ‘पंचायत’ बना रखा था!

कांग्रेस-कम्युनिस्टों का चंपू पत्रकार तो तुम हो! अपनी मालनिक राधिका राय की बहन वृंदाकरात के कहने पर बाबा रामदेव की फैक्टरी के खिलाफ खबर चलाई। दवा में मानव खोपड़ी की हडडी बताया था, लेकिन जब कांग्रेस की ही उत्तराखंड सरकार की जांच रिपोर्ट इस बारे में आई और पतंजलि को क्लिन चिट मिली तो तुमने खबर ही दबा दिया! इससे भी बड़ी चंपूगिरी की मिसाल होती है क्या?

चंपू तो तुम हो रब्बिश, जो अफजल गिरोह को अदालत से क्लिन चिट मिले बगैर हीरो बनाने पर तुले हुए थे। शायद अपने पाकिस्तानी आकाओं की ‘गोदी में खेलने’ को आतुर तुम और तुम्हारी बरखा बहन ने कन्हैया और उमर जैसों को हीरो बनाने के लिए जेएनयू में डेरा डाल दिया था! आतंकी हाफिज सईद ने तुम्हारी बहन बरखा दत्त की खुलेआम तारीफ भी की थी! पाकिस्तानी चंपू तो तुम और तुम्हारा पूरा चैनल रहा है! कारगिल और 26/11 में सैनिकों को मरवाने और पठानकोट में आतंकियों को सूचना पहुंचाने तक का आरोप तुम्हारे चैनल पर है! दोगले शर्म नहीं आती बकैती करते हुए?

तुमने अपने भाई पर लगे बलात्कार की खबर को दबाया और बहन पर लगे भ्रष्टाचार के खबर को भी! देखो न तुम्हारी सैलरी भी तो 2जी, चिदंबरम की 5000 करोड़ की हवाला मनी, कॉमनवेल्थ लूट, टैक्स चोरी, मनी लाउंडरिंग जैसे कमाई से ही आई होगी न? खून फिर कहां से साफ होगा! खून की जांच कराओ! कहीं गटर न हो गया हो!

3) रब्बिश- एन डी टी वी इतनी आसानी से नहीं बना है, ये वो भी जानते हैं।

जवाब- यह बात तुमने बिल्कुल सही कहा है। दूरदर्शन पर डाका डालकर एनडीटीवी बना है, यह वो भी और हम भी जानते हैं! प्रणव राय, दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक आर.बसु और डीडी के ही पांच अन्य अधिकारियों की लूट और भ्रष्टाचार से एनडीटीवी का साम्राज्य खड़ा हुआ है, यह इस देश का पूरा मीडिया बिरादरी जानता है!

20 जनवरी 1998 को सीबीआई ने आपराधिक षड़यंत्र रचने और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत तुम्हारे वर्तमान मालिक प्रणव राय सहित दूरदर्शन के कई अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया था। दूरदर्शन को लूट कर और उसका टेप चुरा कर एनडीटीवी बना है! इतना बेईमानी और डाका डालकर कोई न्यूज चैनल आज तक खड़ा नहीं हुआ! इसलिए तुम्हारी इस बात से तो हम सब सहमत हैं कि एनडीटीवी इतनी आसानी से नहीं बना है! इसे बनने में बड़े पैमाने पर लूट का खेल रचा गया और दूरदर्शन को बर्बाद किया गया! तुम्हारा ही मालिक प्रणव राय था न जो दूरदर्शन के लिए ‘वर्ल्ड दिस वीक’ बनाता था और यही बनाते-बनाते NDTV चैनल का मालिक हो गया! देश को मूर्ख समझते हो क्या जो एक प्रोडक्शन हाउस के इतने बड़े चैनल बनने के पीछे की वह कहानी को न समझें?

4) रब्बिश- मिटाने की इतनी ही खुशी हैं तो हुजूर किसी दिन कुर्सी पर आमने सामने हो जाइयेगा। हम होंगे, आप होंगे और कैमरा लाइव होगा।

जवाब- कुर्सी पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा आमने-सामने ही तो थे, लेकिन जब तुम्हारे एनडीटीवी की पोल खुलने लगी, गाय को बैल बता कर NDTV की कांग्रेस की चंपूगिरी का एजेंडा खुलने लगा तो तुम्हारी एंकर बहन निधि राजदान ने उन्हें अपमानित करके भगा दिया। निष्पक्ष बहस करने की हैसियत नहीं और बात करते हो आमने-सामने कैमरा लाइव की?

दुनिया ने देखा है तुम एनडीटीवी वालों को कि किस तरह से बहस में एजेंडा सेट करते हो, उसे एकतरफा रखते हो और जब विरोधी पक्ष कुछ भी बोलने लगता है तो उसे बोलने से पहले ही चुप करा देते हो! तुम चैनल का पर्दा काला कर, केवल लफ्फाजी में ही माहिर हो! ढंग का पत्रकार होते तो दशकों से एक ही चैनल में पड़े सड़ नहीं रहे होते? ढंग का सवाल-जवाब करना आता तो इतने लंबे पत्रकारिता के करियर में तुम्हारे हाथ भी कोई न कोई भ्रष्टाचार खोलने की रिपोर्ट होती? माफ करना, रिपोर्ट पत्रकारों के हाथ मे होती है, दलालों के हाथ में नहीं! इसीलिए तो न तो तुम्हारे हाथ आज तक एक भी भ्रष्टाचार की रिपोर्ट लगी और न ही पूरे एनडीटीवी के हाथ!

अफसोस, रवीश पांडे, तुम्हारे पास बकैती करने के अलावा कुछ नहीं है! मुंह बिचकाते, कुटिल मुस्कान लिए लफ्फाजी करते यह सब अपने मालिक प्रणय व राधिका राय के लिए लिखते रहो, नौकरी से नहीं भगाएगा! क्योंकि तुम भी जानते हो कि एनडीटीवी के अलावा तुम जैसे लफ्फाज को कोई और नौकरी नहीं देगा! इसलिए प्रणव राय को तेल लगाते रहना तुम्हारी मजबूरी है! आखिर पापी पेट का जो सवाल है! इतना दोगलपन लाते कहां से हो?

साभार: 

लेखक: संदीप देव http://www.indiaspeaksdaily.com

केजरीवाल के नाम एक IIT के इंजीनियर का खुला पत्र

श्रीमान अरविन्द केजरीवाल जी,

वैसे सामान्यतया मैं  आपको गंभीरता से  नहीं लेता| परन्तु आज मुझे आपका कुछ कहा व्यक्तिगत रूप से बुरा लगा है| 

आप  ने कहा की आप  “IIT के इंजीनियर” है, तो  EVM को हैक करने के 10 तरीके बता सकते है | मैं भी IIT का इंजीनियर (Electrical) हूँ और मैं आपको इस संस्थान की इज्जत मिटटी में नहीं मिलाने दूंगा| आज आपको कुछ तथ्यों से सामना करवाता हूँ| आपने आज से करीब 25 साल पहले IIT खड़गपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग किया| आप जनता को बेवकूफ बना सकते है पर एक इंजीनियर को नहीं| एक मेकेनिकल इंजीनियर होने के नाते आप EVM के बारे में कुछ नहीं जानते| EVM के बारे में ज्ञान होने के लिए आपको IC Design, Material science, Communication system, Electronics, Embedded system, Microprocessors and Programming का ज्ञान होना आवश्यक है…   इंजीनियर तो सामन्यतया २ साल में सब भूल जाते है अगर उनका नाता इंजीनियरिंग से टूट गया हो और आप को तो 25 साल बीत चुके है, इसलिए “IIT का इंजीनियर” होने के नाम पर  लोगों को  बेवकूफ बनाना बंद कीजिये|

आप जानते भी है EVM कैसे काम करता है? EVM एक Stand-alone मशीन है, इसका बाहर की दुनिया से कोई नाता नहीं, इसे Software के माध्यम से हैक करना तो लगभग नामुमकिन है| हाँ अगर कोई जाके चिप बदल आये तो संभव है, इसको रोकने के लिए भी चुनाव आयोग आवश्यक प्रशासनिक कदम उठाता है| आप एक हारे हुवे राजनेता  के रूप मैं EVM पर प्रश्न उठायें  पर एक  “IIT का इंजीनियर” होने के नाते नहीं|

वैसे एक सत्य  ये  भी है की कोई IIT का हो जाने मात्र  से  अच्छा  इंजीनियर नहीं हो जाता| अच्छे इंजीनियर तो वो है जिन्होंने EVM जैसी  मशीन  बनायीं  , और इसका एक एक हिस्सा  पूर्ण  रूप से भारतीय  बनाया ताकि किसी विदेशी को भी  न पता चल पाए की EVM कैसे काम करती है | एक हिंदी  न्यूज़  चैनल  के जाने  मने  पत्रकार  रजत  शर्मा  ने आपको IIT का Manufacturing Defect करार  दिया | कुछ  तो  शर्म करो, IITs की  कितनी  बेज्जती  करवाओगे|  

खैर फिर  भी आप को  लगता है कि EVM हैक हो सकती है तो ये गधे की तरह  ढेंचू  ढेंचू  करना बंद करो  | चुनाव आयोग ने  निमत्रण  दिया है, आप भी जाएँ , आपके  10 में से कोई 1 तरीका  लगाएं , EVM हैक करें  और जनता  को सिद्ध  करें | एक बार  हैक करके दिखाओ, फिर कहो  मैं IIT से हूँ तो  हमें भी अच्छा लगेगा की IIT के मेकेनिकल इंजीनियर ने Electrical , इलेक्ट्रॉनिक्स, मटेरियल साइंस, आईटी इंजीनियर सब को गलत साबित कर दिया|  देश का भी भला होगा, पता तो चलेगा की सिस्टम में क्या बदलाव जरुरी है इसे और फुलप्रूफ बनाने के लिए| पर इंजीनियर होने के बावजूद  भी आप पुरानी और भी घटिया बैलट  पद्धति से चुनाव की मांग कर रहे, ये तो पूरी इंजीनियर कम्युनिटी के लिए शर्मनाक है| इंजीनियर टेक्नोलॉजी के मामले में कभी पीछे मुड़ के नहीं देखते|  

आपका शुभचिंतक,

*गौरव कुमार शर्मा, IIT दिल्ली*

#RSS4INDIA मेरी नजर में

सोशल मिडिया पर जितने भी सो काल्ड सेकुलर जो असल में तुष्टिकरण के नीति के पोषक हैं वो सभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दिन भर गालिया देते हैं कुछ महानुभाव तो ये भी कहते पाए गए हैं कि “हम यहाँ संघियों को सेकुलर बनाते हैं” और कुछ को संघ साम्प्रदायिक संगठन लगता हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने घर आये लोगो को कभी पानी नहीं पिलाया होगा वो नागपुर रेलवे स्टेशन के बाहर ये उम्मीद करते हैं की कोई संघी उनको स्टेशन पर मिठाई और पानी लेकर खड़ा मिलेगा, खैर ऐसा ही बहुत सा दुष्प्रचार मैं संघ के बारे में फेसबुक पर सुनती पढ़ती थी| संघ को जानने का मेरे पास कोई साधन नहीं था सिवाय इंटरनेट के और इंटरनेट की जानकारी पर मुझे ज्यादा विश्वास नहीं था, और मेरी उत्कंठा लगातार बढती जा रही थी की आखिर आरएसएस हैं क्या? आखिर में मैंने अपने शहर के संघ कार्यालय का पता किया और एक दिन अपनी एक सहेली को लेकर संघ कार्यालय पहुच गयी वहाँ मौजूद प्रचारक जो समाज सेवा के लिए घर परिवार सभी छोड़कर पूर्णकालिक संगठन के कार्यो को कर रहे हैं उनसे मुलाकात हुई परिचय के बाद बहुत देर तक उनसे संघ के इतिहास और चलाये जा रहे कार्यो के बारे में जानकारी ली, मैं पूरा टाइम उनकी आलोचना करती रही और वो पुरे धैर्य के साथ मेरी बात सुनते और उसका जवाब देते रहे मेरे कटु सवालों के सारे जवाब उन्होंने हँस कर और संतोषप्रद दिए और उन्होंने मुझे संघ की मुख्य पत्र पांचजन्य और बहुत सारी किताबे भी दी हैं पढने को,और मुझे गहन आश्चर्य हुआ यह जानकार कि संघ १२० से भी अधिक आनुसंगिक संगठनों के जरिये पूरे देश में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम कर रहे हैं। नक्सली इलाको में इनके कार्यकर्ता आदिवासी बच्चो के लिए होस्टल चला रहे हैं उनको मुफ्त शिक्षा कपडे सभी दे रहे हैं शहरी क्षेत्रो में सरस्वती शिशु मंदिरों के जरिये भारतीय संस्कृति के साथ वैज्ञानिक तरीके से लाखो बच्चो को राष्ट्रभक्त बना रहे हैं और देश को एक सभ्य और सुसंस्कृत पीढ़ी तैयार कर रहे हैं अब ये आपको तय करना हैं की आप अपने बच्चो को कान्वेंट में पढ़ाकर नशेडी और व्यभिचारी बनायेंगे जो आपको बुढापे में ओल्ड एज होम पहुचायेगा या इन मंदिरों में पढ़ा कर संस्कारवान बनायेगे| खैर बात हो रही थी संघ के कार्यो पर संघ बिना किसी सरकारी फंड के बहुत सारी समाज सेवा के कार्यो को अंजाम दे रहा हैं| जब कही प्राकृतिक आपदा आती हैं तो सरकारी सहायता के पहले संघ की सहायता पहुचती हैं भूकंप में ये हर घर से अनाज नमक मशाले दाल सब्जी एकत्र करके प्रभावित क्षेत्रो में भेजते हैं और किसी की सहायता के पहले उसके धर्म और जाति नहीं पूछते जबकि असम में जब विपदा आई तो कुछ मुस्लिम सांसदों ने ये सहायता शिविरों के बाहर बोर्ड लगाया की सहायता सिर्फ मुस्लिमो के लिए हैं और इसाई धर्म वाले इस सहायता की आड़ में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करवाते हैं मगर संघ बिना किसी स्वार्थ के ये सहायता प्रदान करता हैं| चीन युद्ध में इनके कार्यो से प्रसन्न होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इनको आरडी परेड में शामिल किया जो अभी तक किसी भी गैर सरकारी सेवा संगठन को नहीं मिला हैं|

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अगर बात साम्प्रदायिकता की जाए तो मैंने इनका अखबार और किताबे पढ़ी एक भी साम्प्रदायिक बात मुझे नजर नहीं आई उल्टा ये उग्र राष्ट्रवाद की बात करते हैं और प्राणियों में धर्म या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते हैं इनके संगठन से हर धर्म के लोग जुड़े हुए हैं ये “वसुधैव कुटुम्बकम “ सर्वे भवन्ति सुखिन जैसे सूत्र से सबको जोड़ने का प्रयास करते हैं अपने किसी भी स्वयंसेवक के उपनाम से ना पुकार कर नाम के आगे जी लगा कर पुकारते हैं  और ये सब  तो उन्ही को गलत लगेगा जो देशद्रोही होंगे| “नमस्ते सदा वत्सले मात्र भूमि”इतने पवित्र भाव से धरती को माँ कह कर नमस्कार करने वाले इनको देशद्रोही और वन्देमातरम का विरोध करने वाले देशभक्त लगते हैं| खुद इन्होने कभी भी कोई सेवा का काम नहीं किया होगा मगर ये आरएसएस को कोसते नजर आयेंगे वहाँ हिन्दू तकलीफ में हैं आरएसएस क्या कर रही हैं और ध्यान दीजियेगा मित्रो एक तरफ ये आरएसएस का दुष्प्रचार करके उसकी जड़े भी कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं और खुद कुछ करने की अपेक्षा आरएसएस से उम्मीद लगाए बैठे हैं अरे उस संगठन की जितनी क्षमता हैं वह उतना कार्य कर रही हैं और अगर आप चाहते हैं की वह और ज्यादा काम करे तो उससे जुड़े अपना सहयोग दे वह और भी कार्य करेगी, मगर नहीं ये करेंगे तो यहाँ आलोचना कौन करेगा?  दुनिया में शायद ही कोई इस तरह से निस्वार्थ काम करने वाला संगठन होगा। आप सभी से निवेदन हैं की आप लोग भी मेरी तरह सिर्फ एक बार संघ कार्यालय पर जाए उनके कार्यो को बारे में जाने और उनसे पूछे फिर फैसला ले की क्या गलत हैं और क्या सही, और ऐसा मुझे विश्वास हैं की आप उनके बारे में एक बार जान लेंगे तो आप भी उनके मुरीद हो जायेंगे|

 

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JNU कांड : देशी-विदेशी अंधों को समुचित ज्ञान प्रकाश

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किसी भी देश का पवित्र ग्रन्थ उसका संविधान होता है, इसमें लिखे हुए एक एक शब्द को मानना न्यायपालिका समेत एक एक नागरिक का दायित्व होता है। हमारे देश में लोकतन्त्र है, समय समय पर कानून बनाये भी जा सकते हैं और मिटाये भी।लेकिन हालिया परिस्थिति में जो कानून होता है देश में, उसको मानने के लिए एक एक नागरिक बाध्य है।

आजकल एक विषय चर्चा में है, जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय में कम्युनिस्ट खेमे के छात्रों द्वारा अफजल गुरु, जिसे भारतीय दण्ड सहिंता के हिसाब से महामहिम राष्ट्रपति जी की अनुमति से फाँसी दी जा चुकी थी। छात्रों ने केवल अफजल की फाँसी का विरोध ही नहीं किया बल्कि “भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी” और “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह” जैसे नारे दिए जिसे सुनकर समुचित राष्ट्र की भावनाएं आहत हो गयीं। इस घटना को देश का एक एक बच्चा देशद्रोह से जोड़ कर देख रहा था, पान वाले, ढाबे वाले, मकानमालिक यहां तक की आम जनता में भी रोष व्याप्त हो रहा था।

खैर ये तो देशबासियों की भावनाओं की बात थी, देश का तथाकथित पत्रकारों और बामदलों का एक धड़ा अफजल की फाँसी का विरोध तो सही मान ही रहा था बल्कि इन नारों को सही ठहराकर कन्हैया और उमर खालिद जैसे छात्रों को भी बेगुनाह घोषित कर रहा था। ऐसा घोषित करने वाले वही लोग थे जिन्होंने आम इंसान के द्वारा सरकार को चुकाए गए इनकम टैक्स, और उस इनकम टैक्स द्वारा अर्जित पैसे से पाई हुई सरकारी सब्सिडी का भरपूर इस्तेमाल किया था वो भी ऐसी बिधा की पढ़ाई पढ़ने में जिसमें भारतीय संविधान का जिक्र जरूर आता है।

आइये एक नजर डालते हैं, देशद्रोह के कानून पर।देश में देशद्रोह पर कोई भी कानून सन 1859 तक नहीं था। इसे 1860 में बनाया गया और फिर सन 1870 में भारतीय दण्ड सहिंता की धारा 124A में जोड़ दिया गया जिसमें लिखित या फिर मौखिक शब्‍दों, या फिर चिन्‍हों या फिर प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाता है। इसमें उम्रकैद की सजा होती है।

अब जब देश में देशद्रोह के कानून का प्रावधान है, अफजल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गुनेहगार सिद्ध भी हो चुका है, सजा दी जा चुकी है, अफजल की राष्ट्रपति जी तक दयायाचिका तक निरस्त्र की जा चुकी है, तो फिर ये कौन लोग होते हैं देश के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत करने वाले, या तो ये देश के कानून नहीं मानते या फिर ये देश को अपना ही नहीं समझते। हर वो बात अभिव्यक्ति की आजादी से नहीं जोड़ी जा सकती जो देश के खिलाफ हो। दुनियां में ऐसा कोई देश नहीं होगा जो “अपनी बर्बादी” और “अपने टुकड़े” होने के नारे सुनता रहे। देश के इन देशद्रोहियों को सजा देना भारत सरकार का कर्तव्य भी है और समस्त देशवासियों की भावनाओं का सम्मान करना भी।

नेपाल भूकम्प के दौरान भारतीय मीडिया ने जो किरकिरी कराई थी देश की, वैसी रिपोर्टिंग JNU मुद्दे पर करके इसको और पुख्ता कर दिया है कि ये लोग न तो देश का प्रतिनिधित्व करते हैं न देशवासियों की भावनाओं का सम्मान।

अंतराष्ट्रीय मीडिया में इस मुद्दे की अलग तरह की प्रतिक्रया आई है जिसका मकसद मैं आगे बताता हूँ और एक एक करके समुचित जबाब भी देता हूँ।

1. New York Times
‘turbulent year on Indian campuses’  contradictions in media reports and doctored videos of Kanhaiya Kumar being circulated over the social media. Talking about the attack by lawyers at the Patiala House Courts complex, it stated that ‘the message is clear-violence in the name of ultra-nationalism is accepted’.

समुचित जबाब – पहली बात तो यह है कि वीडियो ओरिजिनल थे, वकीलों द्वारा पत्रकारों की झड़प में पत्रकार भी उतने ही गुनेहगार हैं जितने कि बकील और दूसरी बात यह है भारत सरकार का ऐसी हिंसा में कोई सहयोग नहीं था।

और जो लोग अमेरिका में भारतीयों के प्रति नस्लभेदी टिप्पणी और अपराध के खिलाफ नहीं लिख सकते हैं उनको बिना पूरा मामला जाने दूसरे देश के कानून को सही गलत ठहराने का कोई अधिकार नहीं है। जो लोग अपने देश के सैनिकों द्वारा ईराक, ताइवान, अफगानिस्तान और जापान में की गई ज्यादती पर सबाल नही उठा सकते वो मौन रहें तो बेहतर है, बोलना हमें भी आता है। धन्यवाद!

2.Guardian- ‘This is watershed moment for India. It must choose freedom over intolerance’. Calling Rajnath Singh as ‘hardline home minister’, it said ‘face-off between state repression and intellectual freedom, which has been some time in the making, may well turn out to be a watershed moment for the country’.

समुचित जबाब – जिन देशी पत्रकारों ने आप तक जो समाचार पहुंचाएं हैं, वो शायद इस भ्रम में जी रहे हैं कि भारत अब तक ब्रिटेन का उपनिवेश है। इनकी जानकारी के लिए बता दें अब हम स्वतन्त्र हैं, हमारा भी एक कानून है जो आपके क़ानून के कई गुना विशाल है और हम उसे ही मानने के लिए बाध्य हैं इनकी दी हुई खैरात नहीं। सवा सौ करोड़ लोगों ने सरकार चुनी है पूर्ण बहुमत से पूर्ण विश्वास से, और JNU मुद्दे पर सरकार के कदम ने कुछेक देशद्रोहियों के अलावा सारे देशवासियों का प्रतिनिधित्व किया है। हमारे कानून और सरकार के बारे में राय अपने पास ही रखिये, भारत लोकतांत्रिक देश है जरूरत पड़ने पर हम अपनी सरकार भी बदल सकते हैं और कानून भी। धन्यवाद!

3.Al-Jazeera-
Modi regime was being accused of polarisation, ‘promoting sectarian prejudice’ and ‘authoritarian tendencies’.

“The government has also been accused of trying to repress free speech and tacitly ignoring extremist nationalists who intimidate critics of the BJP,” is said. The report also mentioned about Dalit scholar Rohith Vemula’s suicide and entire controversy surrounding it.

समुचित जबाब – जो लोग ईराक में एजेड़ियों के उत्पीड़न पर नही लिख सकते वो ‘असहिष्णुता’ पर लैक्चर न दें तो बेहतर है। तमाम आतंकवादी संघठनों के कारनामों पर मौन रहकर आप ऐसे देश के बारे में गलत लिख रहे हैं जो दुनियां का शायद सबसे सहिष्णु मुल्क है। हमारे यहां अब्दुलरहीम खानखाना, रसखान, अब्दुल कलाम साहब समेत कई गैर-हिंदुओं को जितना प्यार हिंदुओं ने किया है उतना प्यार तो विश्व का कोई दूसरा मुल्क नहीं करेगा अपने देश के अल्पसंख्यकों को।

और रही बात फ्री स्पीच की, हमारे यहां बोलने की पूरी आजादी है, हमारा मुल्क संविधान के हिसाब से चलता है फतवों से नहीं। बेहतर होगा, केला, मूली, गाजर जैसे फलों-सब्जियों पर बोले गए फतवों पर भी लिखना सीखें। धन्यवाद!

4. Dawn
‘biggest nationwide students protest in quarter of the century’ and said that it had spread to not less than 18 universities across the country.

“The incident marks another flare-up in an ideological confrontation between Modi’s nationalist government and left-wing and liberal groups that is prompting critics to compare it with Indira Gandhi’s imposition of a state of emergency in the 1970s to crush dissent,” the report said. The report concluded by mentioning the attack on people by ‘fanatic Hindus’ over killing of cows and returning of awards by the intellectuals and writers over growing intolerance in the country.

समुचित जबाब – जिस देश में न अभिव्यक्ति की आजादी है न ही प्रदर्शन का अधिकार, उस देश का न्यूसपेपर इसे भारत की सबसे बड़ी स्टूडेंट प्रोटेस्ट मान रहा है। इनकी जानकारी के लिए कहना चाहूँगा, ये पूरी तरह से देशद्रोही विरोध पदर्शन था जिसकी फंडिंग शायद आपके देश से ही आई होगी। न तो ऐसे लोगों के विचार भारत के सबा सौ करोड़ लोगों के विचारों को प्रदर्शित करते हैं, न ही भारत सरकार को। भारत के रहने वाले कुछ लोग जो इसका समर्थन कर रहे हैं उनका तन ही शायद भारत में निवास करता है मन तो शायद आपके देश में ही होगा। हम हिन्दू गाय को उतनी ही पवित्र मानते हैं जितना आप कुरान को, मैं सब धर्मों का आदर करता हूँ, लेकिन आप ने हम हिंदुओं “धर्मांध” कहा है, तो लिखना हमें भी आता है किताब लिख सकते हैं आपकी घटिया सोच पर, खैर आप की “धर्मान्धता” से तो दुनियां दहशत में हैं, सचमुच भारत से ज्यादा तो उन देशों में असहिष्णुता है जहाँ आप जैसे धर्मांध हैं। बेहतर होगा ईराक, सीरिया, गाजा-हमास, IS और तमाम आतंकवादी संगठनों पर रिसर्च करें, फिर उनके खिलाफ लिखने की कोशिश करें तब पता चलेगा असहिष्णुता किसे कहते हैं। धन्यवाद!

5. French Media —
JNU कांड पर फ़्रांस की मीडिया कुछ ज्यादा ही भड़की हुई है भारत सरकार के खिलाफ, ये वही देश है जहाँ इसी मीडिया की बदौलत सेक्युलरिज्म को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा दिया गया। शार्ली अब्दो के कार्यालय पर हमला हो या फिर हालिया पेरिस का आतंकवादी हमला, या फिर फ़्रांस की इजराइल-गाजा की राजनीति। हर बार फ्रांस का मूल नागरिक इसी अति-धर्मनिरपेक्षता का शिकार है, अगर सर्वे करवाया जाया तो ये सामने भी आ जायेगा।

और ऐसे देश की मीडिया हमें ज्ञान दे रही है, बेहतर होगा कुछ ज्ञान और दूरदर्शिता अपने देश में इस्तेमाल करें, सीरिया से आने वाले शरणार्थियों से आने वाली विपत्तियों से निपटने में सहायता मिलेगी।धन्यवाद!!

आरक्षण की आग

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आज फिर धुएं के गुबार उठ रहे हैं।
जेहन फिर वही सबाल उठ रहे हैं।।

शहर बदला है जंगल के माफ़िक,
दहशत में सबके अंदाज घुट रहे हैं।।

जमींदोज उभर आयीं हैं सबकी जड़ें
जहर में खुशनुमा अलफ़ाज़ मिट रहे हैं।।

आज रात फिर फ़ांके किये होंगे उन्होंने,
जिनके घरों में चूल्हे बेराख़ पट रहे हैं।।

शायद कुछ कुलीन लोगों ने छेड़ी है जंग
हर चौराहे पे उनके ये राज लिख रहे हैं।।